समुद्र पर पुल बना
समुद्र पर पुल बना -
विभीषण के राम के पक्ष में मिल जाने से रामदल की शक्ति और बढ़ गई। चारों और उत्साह की लहर दौड़ गई। भारी मात्रा में बड़े-बड़े योद्धा सेना में भर्ती होने लगे उन्हें युद्ध की शिक्षा दी जाने लगी। युद्ध में काम आने वाले अस्त्र शास्त्र बनाए जाने लगे पर एक बड़ी समस्या समुद्र पार करने की थी। समुद्र पार किए बिना लंका पर आक्रमण करना असंभव था। प्रश्न था समुद्र पर पुल कैसे बनाया जाए। सुग्रीव की सेना में नल और नील नामक दो कुशल इंजीनियर थे। उन्होंने इस प्रकार बनाया।
कि वे समुद्र जल में तैरने लगे। ऐसे ही तैरने वाले पत्थरों के सहारे पुल का निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। सेना के हजारों सैनिक मिट्टी कंकड़ पत्थर लाकर समुद्र के किनारे जमा करने लगे। राम वानर दल का उत्साह देखकर अत्यंत पुलकित हुए। वानरों के छोटे-छोटे बच्चे भी उत्साह पूर्वक कार्य कर रहे थे। अचानक राम ने देखा कि एक छोटी गिलहरी भी बार-बार अपने शरीर में मिट्टी लगाती है। और फिर अपने शरीर को समुद्र में धो रही है। राम को बड़ा आश्चर्य हुआ ऐसा कहा जाता है। कि श्री राम ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा तबसे गिलहरी की पीठ पर राम की उंगलियों के चिन्ह बन गए। राम ने गिलहरी का उदाहरण देकर सबको समझाया संगठन में ही शक्ति है।सब छोटे-छोटे प्राणी भी मिलजुल कर कार्य करें। तो समुद्र पर पुल बांधा जा सकता है। पुल बन जाने के बाद राम ने सागर तट पर शंकर जी का एक विशाल मंदिर बनवाया। उसका नाम रखा गया सेतुबंध रामेश्वर सेतु माने पुल और बंद माने बांधने वाले शंकर भगवान की कृपा से बना पुल शंकर जी की रावण पर विशेष कृपा थी। पर राम ने उनकी पूजा करके उनको भी अपने पक्ष में कर लिया।
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