Ram Avtar |आयोध्या के प्रभु श्रीराम के जन्म की पौराणिक कथा |
हम आपको बताते है। राम के जनम की पौराणिक कथा
→ Recipe in Hindi |
तेत्रायुग की बात है। सरयू नदी के पावन तट पर एक सुन्दर नगरी थी उसका नाम था अयोध्या। श्री दशरथ अयोध्या के राजा थे। उनकी तीन रानियाँ, कौशल्या, सुमित्रा, और कैकेयी थी। उनकी कोई सन्तान न थी। इसलिए वे बहुत दुःखी रहते थे। राजा दशरथ के कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ थे। एक दिन उन्होंने अपने कुलगुरु से कहा- "गुरुवर! सन्तान प्राप्ति का कोई उपाय बताइए। " वशिष्ठ जी ने कहा- "राजन्। आप सच्चे मन से भगवान की प्रार्थना कीजिए। सच्चे मन से की गई प्रार्थना भगवान अवश्य सुनते हैं।" अतएव आप पुत्रकामेष्टि नामक यज्ञ कीजिए। आपके मन की इच्छा अवश्य पूरी होगी। राजा दशरथ ने यज्ञ का आयोजन किया। इसके पुरोहित श्रृंगी ऋषि थे। पूर्णाहुति के समय, यज्ञ कुण्ड में से भगवान अग्नि देव प्रकट हुए। उन्होंने प्रसाद के रूप में राजा दशरथ को चरु (खीर) प्रदान की। तीनों रानियों ने आदर पूर्वक प्रसाद लिया। इस प्रसाद के फल से महारानी कौशल्या की कोख से भगवान ने पुत्र के रूप में जन्म लिया। यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नौवीं तिथि थीं। दूसरे दिन दसवीं तिथि को रानी सुमित्रा के दो पुत्र हुए। रानी कैकेयी को भी एक पुत्र प्राप्त हुआ। इस प्रकार महाराज दशरथ चार पुत्रों के पिता बनें।
महर्षि वशिष्ठ ने चारों राजकुमारों का नामकरण संस्कार कराया कौशल्या के पुत्र का नाम राम,सुमित्रा के पुत्रों का नाम लक्ष्मण और शत्रुघ्न और कैकेयी के पुत्र का नाम भरत रखा गया। चारों भाइयों में राम सबसे बड़े थे। वे अपनों से बड़ों का आदर करते थे तथा छोटों को प्यार राम के साथ लक्ष्ममा तथा भरत के साथ शत्रुघ्न की जोड़ी प्रसिद्ध हुई। चारों भाई सूर्य के उदय होने से पूर्व ही जाग जाते थे। सबसे पहले मे माता-पिता और गुरु चरण छूते थे। फिर शरीर को बलिष्ठ बनाने के लिए सूर्य नमस्कार आदि व्यापाम करते थे। सरम नदी में स्नान करते। फिर भगवान को पूजा करते। तब अच्छे-अच्छे का अध्ययन करते वे क्षत्रिय बालक थे। मंत्रियों का प्रमुख कार्य दुष्टों से समाज की रक्षा करना है। अतः वे प्रतिदिन पोड़ी पर सवार होकर जंगलों में जाने तथा वहाँ धनु एवं आदिशने का अभ्यास करते थे। हिंसक पशुओं का आखेट भी करते राम में अनेक गुण थे, जैसे- दीन-दुखियों पर दया करना, अपने से बड़ी का आदर कर सत्य बोलना आदिवासी, इसलिये अयोध्या नगर की निवासी उनको बहुत प्यार करते थे। भरत सक्ष्मण रान तीनों भाई राम की आज्ञा का पालन करते थे ये भी राम के समान हर दयावान एवं सत्यवादी थे।
Post a Comment