बलशाली अंगद का पैर

 

बलशाली अंगद का पैर-


श्री राम ने रावण को समझाने के लिए, अंगद को दूत बनाकर लंका भेजा। अंगद अपने पिता बाली के समान ही बड़े वीर एवं पराक्रमी थे। श्रीराम उन्हें बहुत प्यार करते थे। अंगद रावण के दरबार में पहुंचे। रावण ने उनका परिचय पूछा अंगद ने कहा-" मैं श्री राम का दूत बाली का पुत्र अंगद हूं " तुम्हें समझाने आया हूं " की रावण तुम वीर एवं पराक्रमी हो। पर तुम्हारा अहंकार बहुत बढ़ गया है।



 तुम बहुत पाप करने लग गए हो। अतः अधर्म और पाप का मार्ग छोड़ दो।  सीता माता को आदर सहित वापस कर दो। श्रीराम जी से क्षमा-याचना करो। वह बहुत दयालु है, हम आशील है। उनकी शरण में जाकर तुम्हारा कल्याण होगा। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे। तो वे युद्ध में तुमको सेना सहित मार डालेंगे। अंगद की बात सुनकर रावण हंसने लगे। उसने कहा मेरे पास अतुल शक्ति है। मैं तुम्हारे जैसे बंदरों की सेना को चुटकी से ही मसल डालूंगा। तुम में क्या शक्ति है। रावण की चुनौती सुनकर अंगद को क्रोध आ गया। उन्होंने अपना पैर जमीन पर जमा कर कहा। यदि तुम्हारा कोई भी सिपाही मेरा पैर हटा देगा। तो श्रीराम की सारी सेना हार मान लेगी। श्री राम बिना लंका जीते वापस लौट जाएंगे। पर यदि कोई भी ना हटा सका। तो लंका श्री राम की हो जाएगी। रावण ने शर्त स्वीकार कर ले एक बंदर के पैर को हटाने में भला क्या देर लगती। राक्षस प्रयत्न करके थक गए पर अंगद के पैर को हिला भी ना सके। तब रावण उठा वह महा शक्तिशाली था। अंगद चतुर्थी उन्होंने चतुराई से कहा।अरे मूर्ख तुम मेरे पांव क्यों पकड़ रहा है।  जय श्रीराम के पांव पकड़ यह सुनकर रावण शर्म से पानी पानी हो गया।अंगद तब विजेता की तरह वापस श्री राम के पास लौट आए। 

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