सीता की अग्नि-परीक्षा
सीता की अग्नि-परीक्षा -
राम ने विभीषण को दिया वचन पूरा किया। लंका के प्रजा सुखी हुई। विभीषण लंका के राजा हुए। राजतिलक के पश्चात विभीषण सपरिवार राम को प्रणाम करने आए। श्री राम ने उसे सुखी रहने का आशीर्वाद दिया। प्रजा की सेवा करने को कहा। तब से राम की आज्ञा से हनुमान अंगद और विभीषण सीता जी को लेने गए। सीता जी राम विजय के समाचार से हर्ष विभोर थी। उन्हें स्नान और सोलह श्रृंगार कराए गए। विभीषण पालकी ले आए। सीता जी के स्वागत के लिए वानर सेना उत्सुक थी। पालकी से उतर कर उन्होंने सबको दर्शन दिया। वानर सेना ने जय जय कार किया। पर कुछ लोगों के मन में सीता जी के प्रति संदेह था। वह रावण के यहां 1 वर्ष तक रही थी। राम लोगों की भावना ताड़ गए थे। अतः उन्होंने सीता से कहा तुम्हें अपनी पवित्रता सिद्ध करनी होगी।
हो सकता तुम पर लंका के वातावरण का संस्कार पड़ा। हो एक विशाल सीता बनाई गई। सीता जी उसमें बैठ गई उन्होंने कहा है। अग्नि देव यदि मैं मन वचन कर्म से पवित्र हूं। तो आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ लेंगे। लक्ष्मण ने अग्नि से चिता प्रज्ज्वलित की धीरे-धीरे लाल-लाल लपटें आसमान छूने लगी। सब सशंकित होते पर सीता जी का बाल बांका भी ना हुआ। वह अग्नि परीक्षा में खरी उतरी राम ने सीता को अपने पास बिठाया। सबने श्री राम और सीता का जय जयकार किया। राम का उद्देश्य पूरा हो गया था। अतः अब उन्हें अयोध्या वापस लौटने की व्याकुलता होने लगी। वनवास की 14 वर्ष की अवधि भी पूर्ण होने को थी। भारत को दिया गया वचन याद आने लगा। उन्होंने वापस लौटने की घोषणा कर दी। विभीषण ने अपना पुष्पक विमान प्रस्तुत किया। राम लक्ष्मण सीता के साथ अनेक वादल भी उसमें सवार हुए। यह एक बहुत बड़ा विमान था। हनुमान भरत को संदेश देने के लिए पहले ही चले गए थे। सुग्रीव अंगद जामवंत नील नल के साथ निवेशन ने भी श्री राम के साथ ही अयोध्या की ओर प्रस्थान किया।
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