रोग से मुक्ति के उपाय
हमारे शरीर में विभिन्न रोगी के जीवाणु किसी न किसी माध्यम द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं, जो हमें रोगग्रस्त कर देते है। रोगो का संवाहन जल, भोजन तथा वायु के द्वारा होता है। परन्तु बहुत से ऐसे भी रोग है जिनका संवहन जिव-जन्तुओ द्वारा होता है। मच्छर, पिस्सू, मक्खी आदि भी रोगो के संवहन में सहायक होते है। एनोफ़िलीज़ मच्छर मलेरिया का, पिस्सू प्लेग का ओर क्यूलेक्स फाइलेरिया रोग का संवहन करते है।
आओ जाने -
मच्छर के काटने पर मलेरिया, फाइलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, मष्तिष्क ज्वर तथा पीत ज्वर आदि खतरनाक बीमारिया होती है।
मलेरिया (Malaria) -
मलेरिया रोग एनोफ़िलीज़ मादा मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर जब स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तब उसके रक्त में मलेरिया के कीटाणु प्रवेश करके रोग उत्पन्न करते है।
लक्षण -
- सर्वप्रथम व्यक्ति को ज्वर होता है जो बार-बार चढ़ता उतरता है।
- बुखार चढ़ते समय बहुत ठण्ड लगती है। रोगी कापता है। सिऱ दर्द होता है।
- कभी-कभी उसका जी मिचलाता है। पित्त का वमन होता है।
- जब ज्वर उतरता है। तो पसीना आता है।
- रोगी कमजोरी का अनुभव करता है ओर रक्त की बहुत कमी हो जाती है।
मलेरिया से पीड़ित व्यक्ति की देखभाल करते समय निम्नलिखित बातो पर ध्यान देना चाहिय्रे :
- मलेरिया के रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिए।
- सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए।
- हल्का ओर सुपाच्य चाहिए।
फ़ाइलेरिया (Filaria) -
फाइलेरिया रोग क्यूलेक्स जाति के मच्छर के काटने से होता है। क्यूलेक्स मच्छर कमरे में अँधेरे स्थानों तथा गहरे रंग के कपड़ो के पीछे छिपे रहते है। रात्रि को उन स्थानों से निकलकर मनुष्य को काटते है और उन्हें रोगी बना देते है।
लक्षण -
- पैर में सूजन हो जाना।
- चलने में परेशानी होना।
डेंगू बुखार (Dengue Fever) -
डेंगू बुखार एक विषाणु जनित रोग है, यह एडीज़ ऐजिप्टी नामक मच्छर के काटने से फैलता है, यदि मच्छर डेंगू बुखार से ग्रसित व्यक्ति को काटकर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काट लेता है तो डेंगू वायरस उस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में चला जाता है, जिस से स्वस्थ व्यक्ति को भी बुखार हो जाता है।
ऐसे मच्छरों की कुछ खास विशेषताए होती है -
- इन मच्छरों के शरीर पर काले व् सफ़ेद रंग की धारियां होती है।
- इस प्रकार के मच्छर दिन में ज्यादा काटते है।
- ठण्डे, साफ़ एवं छाँव वाले जगह पर ज्यादा रहते है।
- अधिक दिनों तक रखे साफ़ पानी में अंडा देकर अपनी वृद्धि करते है।
लक्षण -
- कभी-कभी रोगी के शरीर में आंतरिक रक्तस्राव भी होता है, जिससे शरीर में प्लेटलेटस का स्तर कम हो जाता है।
- सरदर्द, आँखों में दर्द, बदन दर्द, जोड़ो मैं दर्द होना।
- भूख कम लगना जी मिचलाना, दस्त लगना।
- त्वचा पर लाल चकत्ते आना।
- अधिक गंभीर स्थिति में आँख, नाक में से खून भी निकलता है।
- ठण्ड लगने के साथ अचानक तेज बुखार चढ़ना।
चिकुनगुनिया (Chikungunya) -
चिकनगुनिया एक वायरस जनित रोग है , यह एडीज एजिप्टी मच्छर के काटने के कारण होता है।
इसमें जोड़ों में बहुत अधिक दर्द होता है। मच्छर काटने के दो - तीन दिन बाद इसका संक्रमण होता है।
लक्षण -
- सिर दर्द , जुकाम व खांसी।
- जोड़ों में दर्द व सूजन।
- तेज बुखार , नींद न आना।
- शरीर पर लाल रंग के चकत्ते का होना।
- आँखों में दर्द व कमजोरी।
मस्तिष्क ज्वर (Encephalitis) -
मस्तिष्क ज्वर को ही एक्यूट इंसिफेलाइटिस सिंड्रोम (ए०ई०एस०) / जापानी इंसिफेलाइटिस (जे०ई० ) भी कहते हैं। यह रोग एक प्रकार के विषाणुओ , जीवाणुओं , फफूंद , पैरासाइट आदि से होता है। विभिन्न ऋतुओं एवं भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार समय - समय पर उपर्युक्त कारणों में से कोई भी कारण प्रभावी हो सकता है। मस्तिष्क ज्वर का प्रसार मुख्यतः मच्छर के काटने , पर्यावरणीय एवं व्यक्तिगत स्वछता के अभाव एवं प्रदूषित पेयजल के उपयोग से होता है।
कारण -
- यह रोग फ्लेविवायरस से संक्रमित मच्छर के काटने से फैलता है। इस रोगी का प्रकोप वर्षा ऋतू एवं उसके उपरांत (जुलाई से अक्टूबर ) अधिक होता है। जिस समय मच्छरों की संख्या अधिक होती है।
- जापानी इंसिफेलाइटिस वायरस के मुख्य वाहक सूअर है। यदि एक भी मच्छर इन्हे काटने के बाद स्वस्थ व्यक्ति को काट ले तो इस रोग का संक्रमण उस व्यक्ति को हो जाता है।
लक्षण -
- तेज बुखार आना , चिड़चिड़ापन होना।
- बोलने में परेशानी होना।
- बेहोशी आना।
- हाथ - पैरों में अकड़न।
- सिर में तेज दर्द , शरीर में थकावट होना।
- आँखें लाल एवं चढ़ी - चढ़ी होना।
- दांत बंध जाना।
- झटके लगना एवं मुँह से झाग निकलना।
मच्छर जनित रोगो से बचाव -
- अपने घर के आस - पास अनावश्यक पानी एकत्र न होने दें।
- जहाँ पानी एकत्र हो वहां कैरोसिन तेल का छिड़काव कर दें।
- कूलर में पानी न इकठ्ठा होने दें उसकी नियमित सफाई करें।
- खिड़की एवं दरवाजों में महीन जाली लगवाएं।
- मच्छरों को भगाने के लिए कपूर , सूखी नीम की पत्तियां , नीम का तेल , मच्छर निरोधी क्रीम , मैट , क्वायल आदि का प्रयोग करें।
- सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।
- मच्छरों से बचाव के लिए यथासंभव अपने आस - पास कूड़ा करकट इकठ्ठा न होने दें।
- प्लेटलेट्स बढ़ाने के लिए पपीते के पत्ते का रस , गिलोय का जूस पीने व कीवी फल खाने की सलाह दें।
- बच्चों को धूल - मिटटी से बचाव हेतु जूता - चप्पल आदि पहनने तथा पैर धोने के बारें में जागरूक करें।
- बच्चों में रोग - प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के लिए उन्हें पौष्टिक तत्वों से युक्त आहार दें।
- आपके गाँव , कस्बे , मोहल्ले में अधिक लोगों को बुखार आ रहा हो तो नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पर सुचना दें।
- सरकार द्वारा भी इस बीमारी की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये जा रहे हैं।
श्वसन संबंधी रोग -
जुकाम (Influenza) -
प्रायः लोग जुकाम को एक साधारण रोग समझकर टाल देते हैं परन्तु ऐसा नहीं है। ब्रोंकाइटिस , निमोनिया तथा क्षय जैसे गंभीर रोग भी एक साधारण जुकाम से प्राम्भ हो सकते है।
कारण -
- मौसम और वातावरण के तापमान में परिवर्तन जैसे - किसी बंद और गर्म स्थान से सहसा खुले और ठन्डे स्थान में जाना।
- मुख , नासिका , ग्रीवा में कोई दोष उत्पन्न हो जाना।
- धूल , धुंआ अथवा रासायनिक पदार्थों से दूषित वायुमंडल जैसे - कल - कारखाने आदि से निकला धुंआ।
- भोजन में विटामिन की कमी , अधिक धूम्रपान इस रोग के आक्रमण में सहायक होते हैं।
लक्षण -
सबसे पहले नासिका में भारीपन का अनुभव होता है , फिर छींक , कपकपी लगना , नासिका तथा नेत्र की सूजन , नासिका से स्राव , नेत्रों का लाल होना , मस्तिस्क में पीड़ा होना , ज्वर होना आदि लक्षण प्रकट होते है।
यह बाते आवश्यक है। -
- रोगी को चाहिए कि हाथ-मुँह तथा अपनी नासिका ग्राम पानी से साफ़ कर लें। फिर गर्म चाय तथा काढ़ा पीकर आरामपूर्वक लेट जाए।
- खांसी और छींक आने पर साफ़ रुमाल को मुँह पर रखकर खांसे व छींके।
- हल्का एवं सुपाच्य भोजन लेना चाहिए।
- भोजन में विटामिन "ए" और "डी" तथा खनिज पदार्थ प्रचुर मात्रा में लेना आवश्यक है।
स्वर यंत्र की सूजन -
यह रोग मुख्यतः जुकाम कारण होता है। आवाज़ में परिवर्तन इसका सबसे बड़ा लक्षण है। कभी-कभी कंठ से आवाज़ निकलना भी बंद हो जाती है। कंठ में खराश तथा घुटन का अनुभव होता है। शवसन गति तीव्र हो जाती है। साँस लेने में कष्ट होता है। अधिकतर रोगी को हल्का ज्वर रहता है तथा नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है।
उपचार -
- रोगी के बिस्तर को गर्म रखना चाहिए।
- रोगी को गर्म पानी में एक चुटकी नमक डालकर गरारा करना चाहिए।
- रोगी को सादा व हल्का भोजन दिया जाना चाहिए।
निमोनिया -
निमोनिया को फेफड़े की सूजन के नाम से भी जाना जाता है। प्रायः एक ही फेफड़ा इससे प्रभावित होता है। कभी-कभी दोनों ही फेफड़ा साथ-साथ या एक के बाद एक रोग से प्रभवित होते है। इसे डबल निमोनिया कहते है।
लक्षण -
- जुकाम हो जाने के दो या तीन दिन बाद तक रोगी हल्का ज्वर तथा बेचैनी का अनुभव करता है।
- रोगी को प्रारम्भ से भयंकर कपकपी आती है।
- साधारणतः रोगी को अत्यधिक ज्वर होता है। उसका ताप 104 डिग्री या 105 डिग्री फॉरेन्हाइत तक हो जाता है।
- नाड़ी की गति बढ़ जाती है एवं साँस तेजी से चलने लगती है।
- भूख नहीं लगती है।
उपचार -
- रोगी को तुरंत बिस्तर पर लिटा देना चाहिए।
- उसे ऊनि या गर्म कपड़ो से ढक देना चाहिए।
इस तरह के लक्षण प्रकट होने पर तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए। यदि समय पर इसका उचित उपचार न किया जाए तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
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