लंका धु-धु कर जलने लगी
लंका धु-धु कर जलने लगी -
हनुमान के उपद्रव का समाचार रावण तक पहुंचा। वह क्रोधित हो गया उसने अपने पुत्र अक्षयकुमार को हनुमान को पकड़ने भेजा। अनेक राक्षस भी उसके साथ गए। हनुमान से अक्षयकुमार का युद्ध हुआ। उन्होंने एक घुसा मारा तो रावण का पुत्र मारा गया। फिर रावण ने मेघनाद को भेजा। वह बड़ा पराक्रमी था। उसने हनुमान को नागपाश से बांध लिया। वह उन्हें पिता के पास ले गया। रावण ने हनुमान को मार डालने की आज्ञा दी। पर विभीषण ने रावण को समझाते हुए कहा यह बंदर एक दूत बनकर आया है। दूत को मारा नहीं जाता। रावण ने तब आज्ञा दी। इसकी पूंछ में कपड़ा बांधकर तेल छिड़क दो और आग लगा दो हनुमान की पूंछ में राक्षसों ने आग लगा दी। हनुमान उछल कूद करते हुए भवनों और महलों पर चढ़ गए और लंका को जलाने लगे एक महल के बाद दूसरे महल पर वे कूदते रहे और आग लगाते रहे सारी लंका धू धू कर जलने लगी।
केवल विभीषण के महल को उन्होंने छोड़ दिया। क्योंकि वह राम भक्त था। राक्षसों की स्त्रियां हाहाकार करने लगी। लंका जला डालने के बाद हनुमान जी ने समुद्र ने कूदकर अपनी पूंछ की आग बुझाई। फिर वह सीता के पास पहुंचे उनसे विदा ली। सीता ने उन्हें राम को देने के लिए चूड़ामणि दी। सीता माता का आशीर्वाद पाकर हनुमान वापस लौट आए। उन्होंने अंगद एवं जामवंत को सारा समाचार सुनाया। सब प्रसन्न होकर किष्किंधा लौट आए। किष्किंधा में सीता का कोई समाचार ना मिलने से राम बहुत उदास थे। सुग्रीव भी चिंतित थे। इतने में हनुमान पहुंच गए सीता का समाचार मिला चूड़ामणि को देखकर श्रीराम प्रसन्न हो गए प्यार से उन्होंने हनुमान को छाती से लगा लिया। सुग्रीव ने अपने सेनापतियों को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया। रणभेरी बजने लगी।
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