विभीषण का तिलक

 

विभीषण का तिलक -

रावण घायल होकर युद्ध-भूमि में पढ़ा था। अब उसकी मृत्यु निकट थी। मंदोदरी आदि रानियां विलाप कर रही थी। राक्षस उदास थे। रावण का अंत समय निकट जान राम ने लक्ष्मण को बुलाकर कहा "  लक्ष्मण रावण राजनीति का महापंडित है। अतः तुम उसके पास जाओ और उसे राजनीति की शिक्षा लोग लक्ष्मण रावण के पास गए। उसने उसके सिर के पास खड़े होकर उससे राजनीति की शिक्षा देने को कहा। रावण कुछ ना बोला लक्ष्मण वापस लौट आए। तब राम ने समझाया। उसके पांव के पास खड़े होकर उससे ज्ञान का दान मांगो। जिससे ज्ञान लेना है। उसे गुरु मानकर आदर देना चाहिए। गुरु से नम्र शब्दों में प्रार्थना करनी चाहिए। लक्ष्मण पुनः गए उन्होंने वैसा ही किया। तब रावण ने राजनीति का बहुत सा ज्ञान उन्हें दिया। अंत समय में उसने श्रीराम के दर्शनों की इच्छा की श्री राम उसके पास गए उन्होंने रावण को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया। रावण ने प्राण त्याग दिए लंका में हाहाकार मच गया। अधिवेशन भी रोने लगे आखिर रावण उसका बड़ा भाई ही तो था। कुमार्ग पर जाने से उसकी यह दशा हुई विभीषण ने रावण का दाह संस्कार किया। 13 दिन तक सबने शोक मनाया 14 वें दिन लक्ष्मण विभीषण के साथ लंका पूरी देखने निकले लंका में अथाह धन था।



 महल भी सोने के थे। विभीषण ने राम से कहा लंका का राज्य आपका है। आप अब यही राज कीजिए। लक्ष्मण को भी लंका भाग गए थे। तब राम कहने लगे।  लक्ष्मण जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। मुझे यह सोने की लंका नहीं चाहिए। तब उन्होंने अपने दिए गए वचन के अनुसार लंका का राज विभीषण को दे दिया। विभीषण का धूमधाम से राजतिलक किया गया। रावण के अत्याचारी शासन का अंत हुआ। 

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