सीता स्वयंवर

 

सीता स्वयंवर -


भारत के पूर्वी भाग में मिथिला हैं वहा के राजा जनक थे वे बहुत ज्ञानि थे उनकी पुत्री का नाम सीता था राजा जनक के गुरु का नाम परशुराम था वे शिवजी के भक्त थे परशुराम जी को शिव जी ने एक धनुष दिया था यह बड़ा विशाल और भारी धनुष था परशुराम जी ने यह धनुष राजा जनक को दे दिया था इस धनुष को उठाकर उस पर डोरी चढ़ाना बड़ा ही कठिन था सीता जब विवाह योग्य हुई तब राजा जनक ने उनका स्वयंवर रचाया उनकी एक शर्त थी जो शिव धनुष को उठा करा उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ विवाह किया जायेगा सीता के स्वयंवर का समाचार सिद्धाश्रम में भी पंहुचा दोनों भाइयो के मन में मिथिलापूरी का स्वयंवर देखने की इच्छा हुई गुरु जी ने दोनों भाइयो को लेकर मिथिलापुरी के लिए प्रस्थान किया महर्षि विश्वामित्र के साथ दो सूंदर राजकुमारों को देख कर राजा जनक बड़े ही प्रसन्न हुए उन्होंने उनका बड़ा स्वागत किया मिथिलापुरी में सीता स्वयंवर का सूंदर आयोजन हुआ एक विशाल मण्डप के निचे अनेक राजा महाराजा बैठे हुए थे बीच में शिव धनुष रखा हुआ था अनेक वीर राजाओ ने धनुष उठाने उठाने प्रयास किया किन्तु धनुष नहीं उठा पाए राजा जनक चिंतित हो उठे तब महर्षि विस्वामित्र ने राम को धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की आज्ञा दी राम ने गुरूजी के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया उन्होंने बात ही बात में धनुष उठा लिया और उसपर उसपर प्रत्यंचा चढ़ा दी उसे उसे कान तक खींचा बहुत भयंकर आवाज़ के साथ शिव धनुष बीच से टूट गया

राजा जनक की शर्त पूरी हुई सीता ने राम के में जयमाला डाल कर उन्हें अपना पति चुन लिया मिथिलापुरी के लोगो ने बड़ी प्रसनता प्रकट की ये सन्देश राजा दशरथ को भेज दिया गया सन्देश पाकर राजा दशरथ दल बल सहित मिथिला आ पहुंचे राजा जनक ने उनकी खूब आवभगत की यज्ञ मण्डप में विवाह का संस्कार धूम धाम से पूरा हुआ सीता की तीन और बहने थी सीता का राम के साथ,लक्ष्मण का उर्मिला के साथ, भरत का मांडवी के साथ और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति के साथ विवाह हुआ


विश्वामित्र जी ने चारो भाइयो की जोड़ी को आशीर्वाद दिया फिर वे अपने आश्रम की और लोट गए उनका कार्य पूरा हो चूका था राजा दशरथ जी ने भी अपने समधी जनक जी से विदा ले ली फिर वे चारो पुत्रो और नव बधुओं को लेकर अयोध्या की और लौटने की तैयरी करने लगे

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