ताड़का मारी गई


ताड़का मारी गई -


आश्रम की ओर जाने के मार्ग से भयावना जंगल था वहाँ शेर, बाघ, चीते, भालू आदि हिंशक जानवर दिन दिहारे घुमते रहते थे अनेक चोर और लुटेरों का भी वहाँ निवास था ये मॉस मदिरा पीकर भोले भाले गांव वालो और तपसियो को सताया करते थे इसी लिए इन्हे राक्षस कहा जाता था उस वन में राक्षसों की रानी भी रहती थी उसका नाम ताड़का था उसके भाई का नाम मारीच था वह बहुत दुष्टा थी वह जीवित मनुष्यो को मारकर खा जाती थी मार्ग में अस्थियो का बड़ा ढ़ेर देखकर राम ने गुरूजी से पूछा- गुरूजी , यहाँ इतनी सारी अस्थिया कैसे एकत्रित हो गई है ? राम की बात सुन कर विश्वामित्र बोले हे राम ! ये अस्थिया संतो और तपसियो की है राक्षसों ने इन्हे मार कर खा डाला था अब भी वे ऐसा ही करते है गुरु का उत्तर सुनकर राम ने पूछा- तब लोग इन राक्षसों का सामना क्यों नहीं करते है ? गुरु विश्वामित्र ने उत्तर दिया ये शास्त्र चलाना नहीं जानते और न ही ये संघठित है इसलिए ये राक्षसों के द्वारा मारे जाते है राम ने कहा तब मैं इनको संगठित करूँगा और राक्षसों का वध करूँगा गुरु विश्वामित्र ने सिध्राश्रम पहुंच कर श्री राम और लक्ष्मण जी को शास्त्र विद्या मैं पूर्ण बनाया और उन्होंने शास्त्र की भी शिक्षा दी एक दिन की बात है महिर्षि विश्वामित्र यज्ञ कर रहे थे आश्रमवासी प्रार्थना कर रहे थे कि अचानक आकाश से धूल, पत्थर और हड्डियो की वर्षा होने लगी ताड़का ने राक्षसों की सेना लेकर आश्रम पैर आक्रमण कर दिया था यज्ञ विध्वंश हो गया राम को यह देखकर बहुत क्रोध आया उन्होंने अपना धनुष उठाकर राक्षसों पर तीरो की वर्षा कर दी अनेक राक्षस मारे गए थोड़ी देर बाद राक्षसी ताड़का भी मारी गई




उसकी छाती मैं तीर लगा था तब उसका भाई मारीच तलवार लेकर राम से युद्ध करने लगा राम ने उसे एक ऐसा तीर मारा कि वह उड़कर बहुत दूर समुंद्र में जा गिरा बाकी राक्षस दर कर भाग गए राक्षसों की हार पर सभी आश्रमवासियो तथा वहा के गॉव वालो ने बड़ा आनंद मनाया सबने राम लक्ष्मण की वीरता की प्रसंशा की विश्वामित्र का यज्ञ पूर्ण हुआ

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