सिद्धाश्रम की ओर

 

सिद्धाश्रम की ओर -


हमारे देश का नाम भारत है। भारत के दक्षिण में एक द्वीप है इसका नाम लंका है। त्रेता युग में यहाँ रावण नामक एक प्रतापी राजा राज्य करता था वह वीर तो था परन्तु दुष्ट था। साधू संतो को सताना दीन दुखियो पर अत्याचार करना मॉस मदिरा का सेवन करना छल कपट से दुसरो का धन छीन लेना। आदि उसमे अनेक बुराइया थी इसी लिए उसे राक्षस कहा जाता था उसके शरीर में दस मनुष्यो के बराबर बल था। इस लिए उसका एक नाम दशानन भी कहा जाता था उसके दो भाई और एक बहिन थी भाइयो का नाम कुम्भकरण और विभीषण एवं बहिन का नाम शूर्पणखा था  शूर्पणखा भी बहुत दुष्ट थी। राक्षस के अत्याचारों से प्रजा बहुत दुखी थी।



अयोध्या से कुछ दुरी पर एक सघन वन था वहा ऋषि विस्वामित्र का आश्रम और गुरुकुल था विश्वामित्र बड़े ज्ञानी और तपश्वी थे रावण और उसके राक्षसों का अत्याचार देख कर वे बहुत दुखी रहते थे रावण तथा अन्य राक्षसो को नष्ट करने का उपाय भी कौंध गया और वे राजा दशरथ के पास जा पहुंचे राजा दशरथ ने सिंहासन से उठ कर उनको प्रणाम किया और उनके आगमन का कारण पूछा राजा को आशीर्वाद देकर महर्षि विश्वामित्र बोले राजन मैं आपके दोनों पुत्रों को मांगने आया हूँ। मैं उन्हें शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा दूंगा मैं उन्हें वीर साहसी और पराक्रमी बनाऊंगा ताकि बड़े होकर वे राक्षसों का वध कर सकें। महर्षि विश्वामित्र की बात सुनकर राजा दशरथ असमंजस में पड़ गए उन्होंने अपने कुल गुरु वशिष्ठ से पुछा मुझे क्या करना चाहिए ? महर्षि वशिष्ठ जी ने कहा - साधू संत जैसा कहे वैसा करना चाहिए उनकी बात मानने से भला ही होता है।

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