हनुमान ने समुंद्र पार किया
हनुमान ने समुंद्र पार किया -
दक्षिण दिशा की ओर जाने वाले वानरों के दल के प्रमुख बालि-पुत्र अंगद थे। हनुमान और जामवंत उनके प्रमुख सहायक थे। चलते-चलते यह दल सागर-तट पर पहुँचा। सामने विशाल सागर लहरा था। उसी के निकट एक गुफा थी। दल की समझ में नहीं आया कि अब कहाँ जायें ? तभी उनको गुफा के भीतर से किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी। उत्सुक होकर कुछ वानर अन्दर गए। वहाँ एक विशाल गिद्ध कराह रहा था। यह सम्पाती था - जटायु का बड़ा भाई। सूर्य तक दौड़ लगाने की प्रतियोगिता में उसके पंख जल गये थे।
हनुमान ने उसे जटायु के मरने का समाचार सुनाया। सुनकर सम्पाती को भारी दुःख हुआ। रावण पर क्रोध भी आया। पर वृद्ध और पंखहीन हो जाने के कारण वह विवश था। उसने जामवंत, हनुमान और अंगद को बुलाकर, उन्हें सीता का पता बतलाया। उसने कहा- "समुंद्र के पार लंका है। लंका मैं अशोक वाटिका नामक एक वन है। सीता जी वहीं रावण की कैद में है। वे अत्यंत दुखी है।
सीता का पता जानकर वानर दाल की चिंता दूर हुई। पर प्रश्न यह था कि समुंद्र पार कर लंका में कौन प्रवेश करे। किसी भी वानर में इतना साहस न था। अन्त में जामवंत ने हनुमान से विनती की। उनके बल की प्रसंशा कर उनका उत्साह बढ़ाया। हनुमान तैयार हो गये।
हनुमान जी महेन्द्र पर्वत पर चढ़ गये। वह वहा से लंका दिखाई देती थी। मन ही मन राम का स्मरण किया। उनको आकाश-मार्ग से उड़ने की विद्या आती थी। ' जय श्री राम ' कहकर उन्होंने छंलांग लगा दी। हवा को चीरते हुए वे लंका ली और उड़ चले। मार्ग में सुरसा राक्षसी मिली। हनुमान उसे भी जीत कर लंका के निकट पहुँच गये।
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