सीता की खोज में
सीता की खोज में -
किष्किन्धा का राज्य पा लेने के बाद सुग्रीव बहुत प्रसन्न था। वह अमोद प्रमोद में मगन रहने लगा। इधर वर्षा ऋतु भी बीत गई। सुग्रीव ने सीता की खोज के लिए कुछ नहीं किया तब राम ने लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजा।
क्रोधित लक्ष्मण धनुष पर बाण चढ़ाकर सुग्रीव के पास गए। उसको अपना वचन पूरा करने की याद दिलाई। वचन न पूरा करने पर मारने की धमकी दी। लक्ष्मण को क्रोधित देखकर सब वानर घबरा गए। तब हनुमान ने बीच-बचाव किया। सुग्रीव ने लक्ष्मण से क्षमा-याचना की।
शीघ्र ही सीता का पता लगाने का वचन दिया।
सुग्रीव ने वानरों और ऋक्षो के प्रमुख सरदारों को बुलवाया। उसने सलाह ली गुप्तचरों के अनेक दल - पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारो दिशाओ में भेजे गए। युद्ध के लिए सेनाये संगठित की जाने लगी।
सीता के पाये जाने की आशा दक्षिण दिशा में अधिक थी। क्योंकी जटायु ने भी ऐसा ही बतलाया था। रावण की लंका भी दक्षिण में ही था। अतः दक्षिण दिशा में जाने वाले गुप्तचरो के दल को विशेष रूप से संगठित किया गया। इस दल के नायक अंगद थे। उनकी सहायता के लिए हनुमान और ऋक्षो के सरदार जामवंत को काम सौंपा गया।
हनुमान गुप्तचर कला में भी बड़े ही निपुण थे। राम को उन पर विशेष विश्वास था। अतः राम ने अपनी नाम लिखी अंगूठी हनुमान को दी। सीता से कहने के लिए अपना सन्देश भी दिया। तब सुग्रीव आज्ञा से गुप्तचर वानरों के दलों ने अपनी-अपनी दिशा की ओर प्रस्थान किया। अंगद, हनुमान, जाम्बवंत का दल सैकड़ो वानरों के साथ दक्षिण की ओर बढ़ा।
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