राम की वनवासी सुग्रीव से मित्रता

 

राम की वनवासी सुग्रीव से मित्रता -


किष्किन्धा प्रदेश में ऋक्ष एवं वानर नामक शक्तिशाली जातियों के मनुष्य निवास करते थे।  इनका राजा महाप्रतापी बालि था। उसके ही छोटे भाई का नाम सुग्रीव था। बालि का पुत्र अंगद था।  दोनों भाइयों में पहले बड़ा प्रेम था पर किसी कारण वश दोनों में विवाद हो गया।  बालि पराकर्मी तो था।  उसने  सुग्रीव को घर से निकाल दिया था।  उसकी पत्नी को भी छीन लिया था।  सुग्रीव बालि के डर से ऋश्यमूक पर्वत पर रहता था।  बालि के लिए यह शाप था कि उस पर्वत पर चढ़ने से उसकी मृत्यु हो जायेगी।  अत: वह ऋश्यमूक पर्वत पर कभी नही जाता था।  सुग्रीव के प्रमुख सलाहकार हनुमान थे।  वे पवन के पुत्र और अंजनि के बेटे थे।  वे बड़े शक्तिशाली एवं सूझ-बुझ वाले पुरुष थे।  भगवान के प्रति उनका सच्चा प्रेम था।  





शबरी के बताये गये मार्ग पर चल कर, राम-लक्ष्मण ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुँचे।  सुग्रीव ने इन दो धनुर्धारी वीर युवको को देखा।  उसके मन में शंका उत्पन्न हुई।  अतः उसने हनुमान जी को भेजा।  हनुमान ब्राह्मण-वेष बनाकर उनके पास गये।  उनका परिचय प्राप्त किया।  राम ने अपनी पूरी कहानी उन्हें सुना दी।  तब हनुमान दोनों भाइयो को सुग्रीव के पास ले गये।  सुग्रीव ने उनकी खूब आवभगत की अपनी विपदा की कहानी सुनाई।  बालि के अनाचार के विषय में बतलाया। 
 हनुमान बड़े चतुर थे।  उन्होंने राम सुग्रीव की मित्रता करवा। दी।  अग्निदेव को साक्षी बनाया गया।  राम ने बालि का वध करने की प्रतिज्ञा की।  सुग्रीव ने सीता का पता लगाने का वचन दिया। 
दूसरे दिन सुग्रीव ने बालि को युद्ध के लिए ललकारा।  बालि गदा लेकर सुग्रीव को मारने दौड़ा।  दोनों भाइयो में तुमुल संग्राम हुआ।  सुग्रीव को बहुत चोटें आयी।  तब राम ने सुग्रीव को  माला पहनने को दी। फिर घनघोर गदा युद्ध हुआ।  पर बालि को हराना कठिन था।  अतः राम ने अपने तीर से अनाचारी बालि को मार गिराया।  अनाचारी को मरना पुण्य कार्य है।  सुग्रीव को किषिकन्धा का राजा बनाया गया।  अंगद युवराज बने।  सुग्रीव को उसकी  वापस गयी।  



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