शबरी के जूठे बेर
शबरी के जूठे बेर -
सोने के मृग-रूपी मारीच राक्षस को मार कर, राम-लक्ष्मण पर्णकुटी में पहुंचे। उन्होंने सीता को पुकारा। पर सीता का कहीं पता न था। वे बड़े दुःखी हुए और जंगल-जंगल घूम कर सीता को खोजने लगे। मार्ग में एक जगह उन्हें घायल जटायु मिला। वः बेहोश था। राम ने उसे जल पिलाया तब उसे होश आया होश में आने पर जटायु ने रावण द्वारा सीता के अपहरण की पूरी घटना राम को सुनाई। फिर उसने राम की गोद में ही अपने प्राण त्याग दिए।
राम ने स्वयं अपने हाथो में उसकी चिता रची। उसे पिण्ड दान किया। उसकी चिता को अग्नि दी। तब दोनों भाई सीता की खोज में आगे बढे।
मतंग ऋषि की शिष्या का नाम शबरी था। वह भीलनी थी। वनवासी शबरी ने राम को अपनी कुटिया पर आमंत्रित किया। उसकी कुटिया पम्पा सरोवर के तट पर थी। उसके गुरु ऋषि मतंग थे। राम-लक्ष्मण का शबरी ने बड़ा सत्कार किया। उसने चख-चख कर कुछ मीठे बेर राम के लिए एकत्र कर रखे थे। वे झूठे बेर ही शबरी ने राम की थाली में परोस दिए।
राम ने बिना किसी भेद-भाव के उसका आतिथ्य स्वीकार किया। उसके झूठे बेर भी खूब प्रेम से खाये। उनकी दृष्टि में सब मनुष्य सामान थे। जाती के आधार पर किसी को निचा समझना, वे गलत मानते थे। उनके विचार में प्रेम का महत्व सबसे अधिक था। शबरी ने राम को किषिकन्धा के राजा सुग्रीव के विषय में बतलाया। दोनों भाइयो ने तब किषिकन्धा की ओर प्रस्थान किया।
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