मेघनाद धराशायी हुआ

 

मेघनाद धराशायी हुआ -

कुंभकरण की मृत्यु से भी रावण को चेतना हुआ। उसका अहंकार ना टूटा। उसे अभी भी अपनी शक्ति पर घमंड था। उसने अपने सबसे पराक्रमी पुत्र मेघनाथ को रणभूमि में भेजा। मेघनाथ रणभूमि में अपने मायावी रथ पर चढ़कर आया। उसके बाद दसों दिशाओं में जा जाकर वानरों का संहार करने लगे। इंद्रजाल की विद्या जानता था।




 उसके छोड़े हुए बाण सर्प बनकर वानरों को डसने लगे। वानर सेना तितर-बितर हो गई। राम को भी उसने नागपाश में बांध लिया। इधर देवर्षि नारद ने पक्षीराज गरुड़ को भेजा। उसने मायावी रूपी नाग को खाकर राम को बंधन मुक्त कर दिया। श्रीराम को मुक्त देखकर वानर सेना में नया उत्साह उत्पन्न हुआ। मेघनाद युद्ध में विजय के लिए यज्ञ करने लगा। यज्ञ का तात्पर्य साधना से भी होता है। मेघनाथ वैज्ञानिक था। ऐसे शास्त्र का आविष्कार करना चाहता था। जिससे राम सेना को जीता जा सके। विभीषण के गुप्त चारों ने यह समाचार दिया। राम चिंतित हुए लक्ष्मण ने मेघनाद के यज्ञ को ध्वंस करने की प्रतिज्ञा की लक्ष्मण वानर योद्धाओं को लेकर यज्ञ स्थल में पहुंचे। विभीषण ने इस गुप्त हल्का मार्ग बतलाया। लक्ष्मण ने यज्ञ को धन कर दिया।



 मेघनाथ की साधना भंग हो गई वह त्रिशूल लेकर लक्ष्मण को मारने दौड़ा। लक्ष्मण ने खड़क से उसका त्रिशूल काट दिया। मेघनाथ रूप बदल बदल कर लड़ने लगा। वह कभी शेर बन जाता कभी वैसा बनकर गुजराता कभी आकाश में उड़ जाता। इस प्रकार नाना रूप धरकर वह वानरों का संहार करने लगा। अंत में लक्ष्मण का एक तीर उसकी गर्दन में लगा। उसका सिर फट कर जमीन में गिर पड़ा। राक्षसों में हाहाकार मच गया। रावण मंदोदरी एवं अन्य सभी राक्षस विलाप करने लगे। मेघनाथ की पत्नी का नाम सुलोचना था। वह सांस की आज्ञा लेकर राम के पास गई। राम नारी जाति का आदर करते थे। उन्होंने सुलोचना को आदर पूर्वक मेघनाथ का सिर लौटा दिया। मेघनाथ की वीरता की प्रशंसा की रामकुमार शत्रु का आदर करना जानते थे। सुलोचना पति का सिर गोद में लेकर सती हो गई।

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