हनुमान संजीवनी लाये

 

हनुमान संजीवनी लाये -


लक्ष्मण की मूर्छा किसी प्रकार नहीं टूटी। सब उपचार व्यर्थ हुए। इधर श्रीराम करुण विलाप कर रहे थे। तब विभीषण ने हनुमान को लंका पुरी से सुषेण वैद्य को बुलाने भेजा। वह बूढ़ा वैध था। चलने में असमर्थ था। अतः हनुमान जी उसे घर समेत उठा लाए। सुषेण वैद्य ने लक्ष्मण की नारी देखी। फिर कहा यदि इन्हें जीवित करना चाहते हो।  तो द्रोण पर्वत से संजीवनी बूटी मंगा लो। पर यह रात समाप्त होने के पहले ही आनी चाहिए। द्रोण पर्वत हिमालय में था। लंका से हजारों योजन दूर पर वहां कौन जाए। अंत में हनुमान जी ने कहा। मैं संजीवनी लाऊंगा। आप चिंता ना करें। हनुमान जी योगी थे। आकाश में उड़ना जानते थे। अतः वे तत्काल आकाश मार्ग से ड्रोन पर्वत की ओर जाने लगे। मार्ग में कालनेमि राक्षस ने उन्हें रोका। हनुमान जी ने उसे भी मार गिराया। वह रावण का मित्र था। द्रोण पर्वत में अनेक प्रकार की जड़ी बूटियां थी। पूरा पर्वत ही रोशनी से जगमगा रहा था।


 हनुमान जी संजीवनी बूटी को ना पहचान सके। अतः वे पूरा पर्वत ही उखाड़ कर लौटने लगे। उनका मार्ग अवधपुरी के ऊपर होकर था। वहां भरत ने हनुमान को देखा उनके विशाल आकार को देखकर भरत ने उन्हें राक्षस समझा। तुरंत ही उन्होंने बाण मारकर हनुमान जी को नीचे गिरा लिया। हनुमान राम राम कहते हुए नीचे आ गिरे और मूर्छित हो गए। उनके मुख से राम राम सुनकर भरत को बड़ा पश्चाताप हुआ। होश में आने पर हनुमान जी ने भरत को राम रावण युद्ध का पूरा समाचार सुनाया। लक्ष्मण के शक्ति लगने के बाद भी बतलाई। भारत को और भी दुख हुआ। तब हनुमान जी ने भारत से विदा ली। और शीघ्र ही रणभूमि में पहुंचे। सुषेण वैद्य ने तब संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार किया। लक्ष्मण स्वस्थ हो गए।  राम की सेना में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। 

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